Related Articles
देवशयनी ग्यारस आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती हैं। देवशयनी ग्यारस के बाद से अगले चार महीने तक कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। हिंदू धर्म में देवशयनी एकादशी का बहुत महत्व बताया जाता है, माना जाता है की इस दिन से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते है।
देवशयनी ग्यारस आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती हैं। देवशयनी ग्यारस के बाद से अगले चार महीने तक कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। हिंदू धर्म में देवशयनी एकादशी का बहुत महत्व बताया जाता है, माना जाता है की इस दिन से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते है। आज हम आपको देवशयनी एकादशी व्रत कथा बताने जा रहे है, जिसे आप इस व्रत के दौरान पढ़ सकते हैं , तो आइये जानते है क्या है यह लोकप्रिय कथा:
देवशयनी एकादशी व्रत कथा!
द्वापर युग के समय, एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा: हे केशव! आषाढ़ शुक्ल में आने वाली एकादशी का नाम क्या है? इस व्रत में किस देवता का पूजन किया जाता और इसे करने की विधि क्या हैं? युधिष्ठिर के इन वचनों को सुनकर श्री कृष्ण ने कहा: नारदजी के पूछने पर जो कथा ब्रह्मा जी ने सुनाई थी वहीं में आपसे कहता हूँ।
एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से उत्सुकता के साथ इस एकादशी के बारें में पूछा, तब ब्रह्माजी ने उन्हें कथा सुनना प्रारंभ किया: सतयुग में मांधाता नाम के एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। मांधाता के राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। किंतु भविष्य में के संदर्भ में कोई कुछ नहीं जानता। अतः वे भी इस बात से अनजान थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है।
तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण उनके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा गया। इस अकाल से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। पूरे राज्य में आई इस मुसीबत के कारण यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि में कमी हो गई। मुसीबत से परेशान होकर प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी परेशानियों का वर्णन किया।