एकादशी व्रत कथा वरुथिनी – Varuthini Ekadashi Vrat Katha

हिन्दू धर्म में वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का व्रत रखने के साथ ही इस दिन पढ़े जाने वाली व्रत कथा का भी विशेष महत्व बताया जाता है। वरुथिनी एकादशी व्रत कथा इस प्रकार से है-

युधिष्ठिर बोले, हे भगवन्! कामदा एकादशी के बारे मे विस्तार पूर्वक बताने के बाद, आप कृपा करके, वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में बतलाइये। इस एकादशी का नाम क्या है? इसकी कथा क्या है? कृपया यह सभी आप मुझसे विस्तारपूर्वक कहिए।

श्रीकृष्ण ने कहा – हे राजन! इस एकादशी को वरूथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी सौभाग्य देने वाली, सभी पापों को नष्ट करने वाली तथा मोक्ष प्रदान करनी वाली मानी जाती है। इसकी कथा इस प्रकार से है –

प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करता था। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी था। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था, तभी न जाने कहां से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहा। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया।

राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला।

राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुआ। उसे दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले- ‘हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।’

भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गया था।

जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है।

About Saif Rayeen

Check Also

वट सावित्री व्रत कथा मुहूर्त व अनुष्ठान – Vat Savitri Vrat Katha 2023

यह विवाहित हिंदू महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण पालन है, व्रत ज्येष्ठ के महीने में …