Lord Shiva & Nandi Story – भगवान शिव और नंदी बैल की कथा

देवों के देव, महादेव त्रिदेवों में से एक है। भगवान शिव अपने अंदर पूरा ब्रह्माण्ड समाएं हुए हैं। यदि कोई व्यक्ति मन से भगवान भोलेनाथ की सेवा करता है तो उस पर शिव की अनुकंपा बनी रहती है।
भगवान भोलेनाथ की बात हो और नंदी का जिक्र ना हो तो यह थोड़ा असंभव है। नंदी, भगवान भोलेनाथ के वाहन है और उनके सबसे प्रिय भक्तों में से एक है। आइये जानते है क्या है शिव-नंदी की कथा-

शिवपुराण की कथा के अनुसार नंदी और शिव की कथा इस प्रकार है:

शिलाद मुनि नाम के एक ब्रह्मचारी थे। शिलाद निरंतर अपने योग और तप आदि में व्यस्त रहते थे जिसके कारण वह गृहस्थाश्रम नहीं अपनाना चाहते थे। यह देखकर उनके पितरों ने उनसे वंश समाप्त होने की चिंता व्यक्त की। इस कारण उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए इंद्रदेव से प्रार्थना की। तप के बाद इंद्र को प्रसन्न करके उन्होने जन्म और मृत्यु से परे एक पुत्र का वरदान मांगा। इंद्र ने इस वरदान पर असमर्थता जताई और उनसे भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। जिसके पश्चात शिलाद मुनि ने कठिन तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनके ही जैसे एक मृत्युहीन और अलौकिक पुत्र की कामना की।

भगवान शिव ने मुनि को स्वयं पुत्र के रूप में जन्म लेने का वर दिया। थोड़े समय पश्चात जब शिलाद मुनि हल जोत रहे थे तब उन्हें वहां एक बालक मिला। मुनि ने उस बालक का नाम नंदी रखा। जब वह बालक बड़ा हुआ तो उनके आश्रम में मित्र और वरुण नामक दो मुनि आए। नंदी ने इन दोनों मुनियों की खूब सेवा की। दोनों ऋषि जब आश्रम से जाने लगे तो उन्होने शिलाद मुनि को तो दीर्घायु रहने का आशीर्वाद दिया किन्तु नंदी को यह आशीर्वाद नहीं दिया। जब शिलाद मुनि ने इस संदर्भ में मुनिवरों से पूछा तो उन्होंने कहा की हम यह आशीर्वाद नहीं दे सकते क्योंकि तुम्हारा पुत्र अल्पआयु है।

ऋषियों के इन वचनों को सुनकर शिलाद मुनि चिंतित रहने लगे। उनके पुत्र नंदी से उनकी यह चिंता नहीं देखी गई। उन्होने अपने पिता से कहा की जिसके ऊपर स्वयं भगवन शिव की कृपा है उनका भला कोई क्या बिगड़ सकता है। इतना कहते ही वे मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए शिव की आरधाना करने वन में चले गए। वन में उन्होंने अपने तप और ध्यान से भोलेनाथ को प्रसन्न किया। जब भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए तब नंदी ने कहा कि प्रभु! मैं उम्र भर केवल आपकी सेवा करना चाहता हूँ भगवान ने प्रसन्न होकर नंदी को वरदान दिया और कहा- पुत्र नंदी! तुम भय, मृत्यु से मुक्त, अजर-अमर रहोगे। मेरी कृपा से तुम्हे जरा, जन्म और मृत्यु किसी का भी भय नहीं होगा।

भगवान शिव ने उन्हें एक बैल का मुख दिया। उसके बाद नंदी ना सिर्फ शिव के वाहन बल्कि उनके सर्वश्रेष्ठ गणों में से एक के रूप में पहचाने जाने लगे।

भगवान शिव के प्रति नंदी के इस भक्ति और समर्पण के कारण आज कलियुग में भी हर शिव मंदिर में भगवान शिव के साथ नंदी हमेशा विरजमान होते है। माना जाता ही की यदि आप अपनी मनोकामना नंदी के कान में बोलते है तो वह भगवान शिव सबसे शीघ्र सुनते है।

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