Amla Navami 2023- क्यों रखा जाता है आंवला नवमी व्रत जानें पौराणिक कथा और महत्व

कार्तिक मास का महीना धार्मिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है की इस माह में सच्चे मन से किए जाने वाले पुण्य कार्य शुभ फल प्रदान करते है। चूंकि कार्तिक मास का धार्मिक महत्व अधिक है, यही कारण है की इस महीने में बहुत से व्रत-त्यौहार मनाएं जाते है। ऐसे में आज हम कार्तिक मास में रखे जाने वाले एक और महत्वपूर्ण व्रत के बारे में बताने जा रहे है।

कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन हर साल आंवला नवमी का व्रत रखा जाता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है की इस दिन भगवान श्री कृष्ण गोकुल की अटकेहलियों व रासलीलाओं को छोड़ कर मथुरा चले गए थे। मथुरा पहुंचकर उन्होंने अपने सभी कर्तव्यों का पालन किया था।

आंवला या अक्षय नवमी की यह पूजा मुख्य तौर भारत के उत्तरी भाग में की जाती है। इस दिन महिलाएं विधि-विधान से आंवले की पूजा करती है और अपनी परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती है। इस दिन आंवला नवमी की कथा पढ़ने या श्रवण करने का भी बहुत अधिक महत्व होता है। ऐसे में आज इस ब्लॉग के माध्यम से हम न सिर्फ आपको पौराणिक कथा के बारे में बताएंगे, बल्कि यह जानकारी भी देंगे की इस नवमी के दिन आंवला-पूजन का क्या महत्व होता है-

आंवला नवमी का महत्व | Significance of Akshay Navami 2022

इस साल 2 नवंबर 2022 के दिन आंवला नवमी का व्रत रखा जाएगा। आंवला नवमी के व्रत का महत्व इस प्रकार है-

1. भगवान विष्णु करते है वास
ऐसा कहा जाता है की कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से पूर्णिमा तिथि तक भगवान नारायण आंवले के पेड़ पर निवास करते है, इसलिए इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है।

2. सभी मनोकामनाएं होती है पूर्ण
आंवला नवमी के दिन पेड़ की छाया में भोजन करने को भी कल्याणकारक माना जाता है। इसके पीछे का यह कारण माना जाता है, ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है और सभी मनोकामनाओं को पूरा करते है।

3. स्नान-दान का फल
आंवला नवमी के दिन स्नान एवं दान का विशेष महत्व बताया जाता है। माना जाता है की इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है, वही दान आदि करने के भी बहुत से शुभ फल प्रदान होते है।

आंवला नवमी व्रत कथा | Amla Navami Vrat Katha

आंवला नवमी की व्रत कथा इस प्रकार है:-

एक बार काशी नगरी में एक नि:सन्तान व दानी वैश्‍य रहा करता था। एक दिन वैश्य की पत्नी के पास पड़ोसन आई। पड़ोसन बोली यदि तुम बाबा भैरव को एक पराये बच्चे कि बलि चढ़ा दोगी तो तुम्‍हे पुत्र की प्राप्‍ति होगी। इतना कहकर पड़ोसन वहां से चली गई। वैश्य के घर लौटने के बाद उसकी पत्नी ने पड़ोसन की सारी बातें उससे कही।

अपनी पत्‍नी की सारी बात सुनकर वैश्‍य ने एक मासूम बच्चे की बलि देने की बात को अस्‍वीकार कर दिया। लेकिन पत्नी ने अपने पति की एक न सुनी और मौका पाते ही उसने एक कन्या को कुएं में गिरा दिया और बाबा भैरव को बलि दे दी। लेकिन वैश्य की पत्नी को इस बलि का उल्टा परिणाम देखने को मिला। उसके शरीर पर घाव हो गए और उस कन्या की प्रेतात्‍मा उसे सताने लगी।

अपनी पत्नी की ऐसी हालत में देखकर वैश्‍य ने उससे इसके पीछे का कारण पूछा। तब उसने सारा वृतांत अपने पति को सुनाया। पत्नी की बात सुनकर वैश्य ने कहाकि इस संसार में गौ, बाल और ब्राह्मण हत्या करने वालों के लिए कोई स्थान नही है।

इसलिए इस पाप का प्रायश्चित करने के लिए तुम्हे गंगा नदी के किनारे जाकर भगवान का स्मरण करों। यदि सच्चे मन से तुमने भगवान का भजन किया तो तुम्हे अवश्य ही इन कष्टों से मुक्ति मिलेगी। उसने ऐसा ही किया और गंगा किनारे रहने लगी। वे प्रतिदिन भगवान का स्मरण करती थी। तब एक दिन वहां गंगा माता एक वृद्ध स्त्री का वेश धारण कर प्रकट हुई। उन्होंने वैश्य की पत्नी से कहा- तू मथुरा जा और वहां जाकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी का व्रत कर और इसी दिन विधि-विधान से आंवले के वृक्ष का पूजन कर। ऐसा करने से तुम्हारे सभी पाप धूल जाएंगे और तुम्हें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलेगी।

आंवला नवमी का व्रत रखने से संतान प्राप्ति के साथ ही पारिवारिक सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होती है। ऐसे में महिलाओं को आंवला नवमी के दिन व्रत रखकर विधि-विधान से आंवले के वृक्ष का पूजन अवश्य करना चाहिए।

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