Mahashivratri 2023- महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है जानें 3 प्रमुख धार्मिक महत्व

भगवान शिव के सबसे बड़े महोत्सव महाशिवरात्रि में अब बस कुछ ही समय शेष है। ऐसे में देश के सभी शिवालयों और ज्योतिर्लिंगों में जोर-शोर से इस पर्व की तैयारी शुरू हो गई है। यह तो हम सभी जानते है, की शिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ और देवी आदिशक्ति यानि मां पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। लेकिन क्या आप महशिवरात्री मनाएं जाने के पीछे का धार्मिक महत्व जानते है?

हमारी संस्कृति, परंपराओं और त्यौहारों का एक विशेष महत्व बताया जाता है। माना जाता है कि सभी व्रत-त्यौहार एक प्रकार की दिव्य ऊर्जा से जुड़ें हुए है। इन ऊर्जाओं का नाम ओर रूप कही न कही स्पष्ट किया गया है। ऐसी ही एक अलौकिक ऊर्जा आदिदेव और अनंत भगवान शिव में भी समाहित है। भगवान शिव की महिमा का विस्तारपूर्वक उल्लेख करना शायद संभव न हो, लेकिन उनसे जुड़ें सबसे बड़े महोत्सव महाशिवरात्रि के धार्मिक महत्व के बारे में यहां हम आपको बताने जा रहे है। आइये जानते है-

All about Mahashivratri | महाशिवरात्रि का पर्व

भगवान शिव को समर्पित सबसे पवित्र उत्सव, फाल्गुन के महीने के दौरान कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ता है। हर साल यह फरवरी और मार्च महीने के बीच के समय में यह पर्व मनाया जाता है।

शिवरात्रि की इस पावन रात्रि पर बहुत से शिवभक्त पूरी रात जागते है और भगवान शिव का पूजन करते है। इसके साथ ही कई लोग वैदिक मंत्रों का जाप और ध्यान-साधना का भी अभ्यास करते है। माना जाता है की यह पवित्र अभ्यास हमारे भीतर एक सकारात्मक या पॉजिटिव ऊर्जा का संचार करता है। इस दिन पूजन के साथ ही ध्यान-साधना करने से मन को शांति की अनुभति होती है।

Significance of Mahashivratri | महाशिवरात्रि मनाने के पीछे का महत्व

शिव- शक्ति का मिलन
महाशिवरात्रि के दिन शिवभक्त रात में जागरण करते है और अपने आराध्य भगवान शिव का स्मरण करते है। कहा जाता है कि भक्त इस दिन जाग कर भगवान शिव और देवी आदिशक्ति के विवाह का उत्सव मानते है। धर्म ग्रथों के अनुसार इस दिन महादेव और माता सती का विवाह हुआ था। यह वही दिन था जब आदियोगी भगवान शिव ने वैराग्य का त्याग कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। यही कारण है की इस दिन को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

शिवलिंग स्वरुप में हुए थे प्रकट
धर्म-शास्त्रों में महाशिवरात्रि मनाने के पीछे एक कारण यह भी इस दिन पहली बार भगवान शिव, शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। माना जाता है कि यह एक ज्योतिर्लिंग के रूप में था। कहा जाता है, इस शिवलिंग का न ही आदि था और न ही अंत। इस शिवलिंग के बारे में पता करने का कार्य भगवान शिव ने ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु को सौंपा था। लेकिन वह दोनों इस शिवलिंग के आदि और अंत के भाग तक पहुंचने में असफल रहे थे। इसलिए महशिवरात्रि के दिन भारी संख्या में भक्तों के द्वारा शिवलिंग की विधि-विधान से पूजा की जाती है।

भोलेनाथ ने पिया था विष का प्‍याला
महाशिवरात्रि को उत्सव के रूप में मनाने के पीछे का एक कारण यह भी है इसी दिन ही भोले बाबा को नीलकंठ की उपाधि प्राप्त हुई थी। पौराणिक कथा के अनुसार, जब सभी देवतागण एवं असुर पक्ष अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे, तभी उस समुद्र में से कालकूट नाम का एक भयंकर विष प्रकट हुआ। यह दिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी का ही था। उस समय सभी देवताओं के द्वारा प्रार्थना करने पर भोलेनाथ ने उस विष को पिया और अपने कंठों में उस विषैले प्रभाव को दिया। भगवान शंकर ने उस प्रभाव को तो खत्म कर दिया, किन्तु विष को इतने समय तक गले में रखने के कारण उनका कंठ नीला पड़ गया। उसी समय से भगवान शिव को विश्वभर में नीलकंठ के नाम से संबोधित किया जाने लगा।

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की चालीसा के साथ ही रुद्राष्टक के पाठ को भी बहुत प्रभावशाली माना जाता है। ज्योतिषशास्त्र में महाशिवरात्रि के दिन को आध्यात्मिक उन्नति और ध्यान-साधना के लिए बहुत श्रेष्ट्र माना गया है। कहा जाता है की इस दिन ‘ॐ’ का उच्चारण करने के साथ ध्यान करने से मन में शांति की अनुभूति होती है।

Janmashtami Festivals at Govind Dev Ji Temple | गोविंद देव जी मंदिर में क्या होता है खास

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के इस शुभ अवसर पर गोविंद देव जी मंदिर में रखी भगवान कृष्ण की मूर्ति का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। भगवान कृष्ण के जन्म के बाद हर जगह जश्न मनाया जाता है और मंदिर में बधाइयां सुनाई देती हैं। भगवान नारायण को पीला रंग अत्यंत प्रिय है, यही कारण है की गोविंद देवजी को जन्माष्टमी के अवसर पर पीताम्बर वस्त्र धारण करवाएं जाते है।

यदि आप श्री कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर जयपुर में हैं तो आपको गोविंद देव जी मंदिर की मनमोहक झाकियों के दर्शन जरूर करें। आप ऊपर दिए गए बटन पर क्लिक करके इसे घर बैठे ऑनलाइन भी देख सकते है।

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