What is Karma – क्या कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है जानिए क्या कहते है, कर्म के सिद्धांत!

कर्म के बारे में तो हम सभी ने सुना है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है, की ये

कर्म (karma in Hindi) संसार की प्रक्रिया और नैतिकता का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें विश्वास आम तौर पर भारत की धार्मिक परंपराओं के बीच साझा किया जाता है। भारतीय समाजशास्त्र के अनुसार, भविष्य के जन्म और जीवन की स्थितियाँ किसी के वर्तमान जीवन में किये जाने वाले कार्यों से पर निर्भर करती है। इस प्रकार कर्म (karma yoga) का सिद्धांत भारतीय धर्मों के अनुयायियों को अच्छे कर्म करने का मार्गदर्शन प्रदान करता है।|

ऐसा माना जाता है कि कर्म, हमें नैतिक जीवन जीने के लिए प्रमुख प्रेरणा प्रदान करता है। बौद्ध धर्म में कर्म(karma yoga) का तात्पर्य कारण और प्रभाव के सिद्धांत से है। किसी कार्य का परिणाम – जो मौखिक, मानसिक या शारीरिक हो सकता है – न केवल कार्य से बल्कि इरादे से भी कर्म का प्रावधान तय किया जाता है। आइये जानते है यह कर्म कितने प्रकार के होते है, कर्म के सिद्धांत क्या है, और यह कैसे कार्य करते है-

Types of Karma | कर्म कितने प्रकार के है

1. व्यक्तिगत और सामूहिक कर्म
कर्म मुख्य्तः व्यक्तिगत (individual Karma) या सामूहिक (collective Karma) हो सकते है। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो, व्यक्तिगत कर्म किसी व्यक्ति के शब्दों, विचारों और कार्यों से बनता है। वही जब भी व्यक्ति एक समूह के साथ जुड़कर कार्य करता है, तो वह सामूहिक कर्म कहलाता है। जैसे सैन्य बल और धार्मिक समूह प्रार्थना।

2. अच्छे कर्म और बुरे कर्म
कर्म मुख्यतः दो प्रकार के होते है, अच्छे और बुरे कर्म। अच्छे कर्म (good karma) दूसरों के लिए किए गए अच्छे कार्यों का परिणाम होते है, जबकि बुरे कर्म (bad karma)दूसरों को जानबूझकर नुकसान पहुंचाने का परिणाम होते है। यदि आपके कार्य के द्वारा किसी दर्द, पीड़ा या नुकसान पहुंचता है, तो यह आपके बुरे कर्मों में शुमार होता है। वही यदि आपके कार्यों के द्वारा किसी का भला हो या व्यक्ति के हित में आपके कर्म हो तो यह आपके अच्छे कर्मों के रूप में जाने जाते है।

3. संचित कर्म और प्रारब्ध कर्म
संचित (sanchita karma) का शाब्दिक अर्थ है, सहेज के रखना। ऐसे कर्म, जो स्टोर हो रहे हो वह संचित कर्म कहे जाते है। ऐसा माना जाता है, बार-बार एक ही कार्य करने से वह कर्म संचित (स्टोर) हो जाता है। इन्ही कर्मों को संचित कर्म के नाम से जाना जाता है।
माना जाता है कि, मरने के समय इन कर्मों का कुछ भाग व्यक्ति के साथ उसके अगले जन्म में चला जाता है। यही भाग प्रारब्ध (prarabdha karma) कहलाता है।

Principles of Karma | कर्म के सिद्धांत क्या है

अच्छे व बुरे कर्मों का समावेश

कर्म हमारे द्वारा किये जाने वाले अच्छे व बुरे कर्मों का समावेश होता है। जहां एक ओर अच्छे कार्य आपको, प्रगति और सफलता के मार्ग पर ले जाते है। तो वही दूसरी ओर आपके द्वारा किये जाने वाले बुरे कर्म, देर से ही सही लेकिन आपके जीवन को पतन और नुक्सान की तरफ ले जाते है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में कर्म को लेकर अनेक तथ्य बताये जाते है।

कर्म फल का भुगतान
रामचरितमानस के रचियता आचार्य श्री गोस्वामी तुलसीदास ने भी कर्मों को लेकर उल्लेख किया है। महाकाव्य रामायण में भी उन्होंने कर्म (karma fal) फल को लेकर वर्णन किया है। इस अनुसार जो भी व्यक्ति अपने जीवन में जैसे भी कर्म करता है, उसका फल उसे इसी जीवन में देखने को मिलता है। जैसा आप कर्म करेंगे, आपको वैसे ही फल प्राप्त होंगे। इसी प्रकार से कर्म-चक्र इस संसार में चलता आ रहा है।

कर्म स्थान्तरित नहीं होते है
एक व्यक्ति अपने जीवन में जो भी कार्य करता है, उसका जिम्मेदार वह खुद होता है। व्यक्ति के द्वारा किये गए कर्म, उसी तक सीमित होते है। यह कर्म स्थान्तरित नहीं होते है, न ही किसी और व्यक्ति के साथ बांटें जा सकते है। कोई भी आपके लिए आपके कर्मों का अनुभव नहीं कर सकता है और न ही वे इसे आपके लिए हटा सकते है। इसलिए ऐसा माना जाता है की व्यक्ति को उनके फल के भुगतान के अनुसार ही कर्म करने चाहिए।

अक्सर हमें हमारे बड़े के द्वारा कहा जाता है कि इंसान को हमेशा अपने कर्म (karma yoga)अच्छ रखने चाहिए, क्योंकि यह तो निश्चित है की आज नहीं कल आपके द्वारा किये जाने वाला हर कार्य आपके पास लौट कर अवश्य आता है।

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