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हिन्दू विवाह में वर-वधू और उनके पक्ष के लोगों द्वारा बहुत सारे रीती-रिवाज निभाएं जाते है। इन सभी रस्मों में से एक महत्वपूर्ण रस्म कन्यादान की होती है। यदि हम इस शब्द के सामान्य अर्थ की बात करें, तो ज्यादातर लोग इसे कन्या का दान समझते है। लेकिन ऐसा समझना बिल्कुल गलत है। ऐसे में आज इस ब्लॉग में हम आपको कन्यादान के सही महत्व और प्राचीन परंपरा के बारे में बताने जा रहे है।
कन्यादान का धार्मिक महत्व | Significance of Kanyadan
धर्म शास्त्रों में कन्यादान का बहुत अधिक महत्व बताया जाता है। कन्यादान को महादान के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। कन्यादान के दौरान बेटी का पिता उसके हाथ पीले कर उसके होने वाले पति के हाथ में सौंप देता है। माना जाता है, की पिता अपनी बेटी का हाथ वर के हाथों में थमा कर, उसे अपनी बेटी की ज़िम्मेदारी सौंप देता है। जिसके बाद वर के द्वारा यह संकल्प लिया जाता है की वह उस कन्या से जुडी सभी ज़िम्मेदारियों को भली-भांति निभाएगा। लेकिन कन्यादान का मतलब कन्या को दान में देना नहीं समझना चाहिए।
आइये जानते है कन्यादान का सही अर्थ क्या है और आखिर यह परंपरा कैसे शुरू हुई थी।
कैसे शुरू हुई कन्यादान की परंपरा | How the practice of Kanyadaan started
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बताया जाता है की कन्या का आदान सबसे पहले प्रजापति दक्ष ने प्रांरभ किया था। प्रजापति दक्ष माता सती के पिता थे। माता सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था, वही उनकी 27 बेटियों का विवाह चंद्रदेव से हुआ था। सृष्टि का संचालन सही प्रकार से चलाने के लिए प्रजापति दक्ष ने ऐसा किया था। चंद्र देव को अपनी 27 पुत्रियों की जिम्मेदारी सौंपते हुए, उन्होंने अपनी बेटियों का आदान किया था। आकाश में मौजूद 27 नक्षत्र, प्रजापति दक्ष के 27 कन्याओं को ही माना जाता है।
श्री कृष्ण ने समझाया कन्यादान का सही महत्व | Meaning of Kanyadan by Lord Krishna
कन्यादान सही मायने में क्या है, यह एक बार द्वापरयुग में भगवान कृष्ण ने बताया था। माना जाता है, श्री कृष्ण ने सुभद्रा और अर्जुन का गन्धर्व विवाह करवाया था। इस विवाह के बाद बलराम जी भगवान कृष्ण से इस विवाह को लेकर नारजगी जताई, उन्होंने कृष्ण जी से कहा की कन्यादान के बिना भला यह विवाह किस प्रकार पूर्ण हो सकता है? जिसके जवाब में श्री कृष्ण ने उत्तर दिया
‘प्रदान मपी कन्याया: पशुवत को नुमन्यते?’
अर्थात कन्या के दान का समर्थन भला कौन कर सकता है? यदि हम कन्या दान का सही अर्थ समझे तो वह कन्या का दान नहीं बल्कि कन्या का आदान है। विवाह के समय एक पिता अपनी पुत्री की जिम्मेदारी वर को सौंप देता है। जिसका यह अभिप्राय बिलकुल भी नहीं की उस कन्या का अधिकार अपने घर से खत्म हो गया हो। दान तो वस्तुओं का किया जाता है, न की किसी जीवित मनुष्य का। कन्या तो परमात्मा द्वारा दिए जाने वाला एक उपहार होता है, जिसका दान नहीं आदान किया जा सकता है। कन्या आदान को सुविधानुसार कहने के लिए इसे कन्यादान नाम से सम्बोधित किया जाने लगा। इसलिए लोगो द्वारा कन्यादान का गलत अभिप्राय समझा जाता है।
कन्यादान शब्द के अर्थ से भली-भांति परिचित न होने के कारण बहुत से लोग इसका गलत अर्थ समझते है। लेकिन जैसा की भगवान कृष्ण कहते है, कन्या कोई वस्तु नहीं, जिसका दान कर दिया जाए। इसलिए हम सभी को कन्यादान की सही जानकारी होना आवश्यक है।