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श्री राम स्तुति -(Ram Stuti)

श्री राम स्तुति, राम नवमी, विजय दशमी, रामचरितमानस कथा और अखंड रामायण के पाठ में प्रमुखता से वाचन की जाने वाली वंदना है। Shri Ram Stuti Lyrics in Hindi ॥दोहा॥श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमनहरण भवभय दारुणं ।नव कंज लोचन कंज मुखकर कंज पद कंजारुणं ॥१॥श्री रामचन्द्र… कन्दर्प अगणित अमित छविनव नील …

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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 9 – श्रीमद भगवद गीता नौवाँ अध्याय

॥ अथ नवमोऽध्यायः ॥श्रीभगवानुवाचइदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे।ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्॥1॥श्रीभगवान बोलेः तुझ दोष दृष्टिरहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय विज्ञानसहित ज्ञान को पुनः भली भाँति कहूँगा, जिसको जानकर तू दुःखरूप संसार से मुक्त हो जाएगा। राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्।प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम्॥2॥यह विज्ञानसहित ज्ञान सब विद्याओं का राजा, सब …

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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 8 – श्रीमद भगवद गीता आठवाँ अध्याय

॥ अथाष्टमोऽध्यायः ॥ अर्जुन उवाचकिं तद् ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते॥1॥भावार्थ : अर्जुन ने कहाः हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत नाम से क्या कहा गया है और अधिदैव किसको कहते हैं? अधियज्ञ कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन।प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि …

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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 7 – श्रीमद भगवद गीता सातवाँ अध्याय

॥ अथ षष्टोऽध्यायः ॥ श्रीभगवानुवाच अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥1॥श्री भगवान बोलेः जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं …

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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 6 – श्रीमद भगवद गीता छठा अध्याय

॥ अथ षष्टोऽध्यायः ॥ श्रीभगवानुवाच अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥1॥श्री भगवान बोलेः जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं …

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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 5 – श्रीमद भगवद गीता पांचवा अध्याय

॥ अथ पंचमोऽध्यायः ॥ अर्जुन उवाच संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि। यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चतम्॥1॥ अर्जुन बोलेः हे कृष्ण! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। इसलिए इन दोनों साधनों में से जो एक मेरे लिए भली भाँति निश्चित कल्याणकारक साधन हो, उसको …

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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 4 – श्रीमद भगवद गीता चौथा अध्याय

(कर्म-अकर्म और विकर्म का निरुपण) श्री भगवानुवाचइमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्‌ ।विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्‌ ॥ (१)भावार्थ : श्री भगवान ने कहा – मैंने इस अविनाशी योग-विधा का उपदेश सृष्टि के आरम्भ में विवस्वान (सूर्य देव) को दिया था, विवस्वान ने यह उपदेश अपने पुत्र मनुष्यों के जन्म-दाता मनु को दिया और …

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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 3 – श्रीमद भगवद गीता तीसरा अध्याय

(कर्म-योग और ज्ञान-योग का भेद) अर्जुन उवाचज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥ (१)भावार्थ : अर्जुन ने कहा – हे जनार्दन! हे केशव! यदि आप निष्काम-कर्म मार्ग की अपेक्षा ज्ञान-मार्ग को श्रेष्ठ समझते है तो फिर मुझे भयंकर कर्म (युद्ध) में क्यों लगाना चाहते हैं? (१) व्यामिश्रेणेव वाक्येन …

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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 2 – श्रीमद भगवद गीता दूसरा अध्याय

संजय उवाचतं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥2.1॥भावार्थ : संजय बोले- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा॥1॥ श्रीभगवानुवाचकुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन॥2.2॥भावार्थ : श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह …

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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 – श्रीमद भगवद गीता प्रथम अध्याय

गीता अध्याय 1 श्लोक 1 | geeta chapter 1 verse 1धृतराष्ट्र उवाच(Dhratrashtra speaks)                                       धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।                            …

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