Sakat Chauth Ki Vrat Katha – सकट चौथ की व्रत कथा

आज सकट चौथ का व्रत मनाया जाता है। आज शाम को गणेश जी की पूजा होती है और गणेश जी की कथा सुनी जाती है। आप आज के व्रत की कोई भी प्रचलित कथा सुन एवं पढ़ सकते हैं। सकट चौथ के व्रत में शंकर भगवान और गणेश जी की कथा सुनी जाती है। यही नहीं, एक कहानी कुम्हारी की भी प्रचलित है। तीसरी कथा जो प्रचलित है वो बुढ़िया माई और गणेश जी की है। धर्मसार आपके लिए सकट चौथ की तीनों कथाएं एक ही जगह लेकर आया है। आप अपनी इच्छा से कोई भी कथा पढ़ सकते हैं।

शंकर भगवान की कथा: Sakat Chauth Vrat Katha 1

एक सुबह माँ पारवती स्नान करने गईं। उन्होंने अपने पुत्र श्री गणेश को आदेश दिया की जब तक मैं खुद स्नान करके बाहर नहीं आऊं, कोई भी भीतर ना आ पाए चाहे वो कोई भी हो। उन्होंने अपने पुत्र को द्वार पे रखवाली के लिए खड़ा कर दिया और वे स्नान करने चली गईं।

आज्ञाकारी श्री गणेश जी अपनी माँ की बात मानते हुए द्वार पे खड़े रहे। कुछ समय बाद ही भगवान शिव माता पारवती से मिलने वहां आए। शिव जी जैसे ही भीतर जाने लगे, गणेश जी ने उन्हे रोक दिया। शिव जी को समझ नहीं आया की क्यू उनको भीतर जाने से रोका गया और उन्हें ये बात बड़ी अपमानजनक लगी। शिव जी क्रोधित हो गए और उन्होंने क्रोध में आकर गणेश जी पर त्रिशूल से वार किया जिससे गणेश जी की शीश शरीर से अलग होकर दूर जा गिरा।

जब ये सब हो रहा था तब बहुत शोर हुआ और यह शोर और हल्ला सुनकर माँ पारवती जब स्नानघर से बाहर आई तो उन्होंने गणेश जी का शीश कटा हुआ देखा। ये देखकर माँ बहुत क्रोधित हुई और साथ ही रोने लगी। उन्होंने शिव जी को गणेश जी के प्राण वापिस देने को कहा।

यह सब देखकर भगवान शिव को बहुत बुरा लगा और उन्हें लगा की उनसे बहुत बड़ी गलती हो गईं क्यूंकि गणेश जी तो बस अपनी माँ की आज्ञा का पालन कर रहे थे। तभी शिव जी ने अपनी शक्तियों से एक हाथी का सर गणेश जी के शरीर से जोड़ा और उन्हें नई ज़न्दगी मिली।

बुढ़िया के बेटे और सटक की कथा: Sakat Chauth Vrat Katha 2

किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवां पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ”हर बार आंवां लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवां पक जाएगा।” राजा का आदेश दे दिया। बलि आरम्भ हुई।

जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई। बुढि़या के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढ़िया सोचने लगी, “मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।” तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, “भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।”

सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढि़या सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवां पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवां पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।

बुढ़िया मां और गणेश जी की कथा: Sakat Chauth Vrat Katha 3

एक बुढ़िया थी। वह बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन थीं। उसके एक बेटा और बहू थे। वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी। एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले-

“बुढ़िया मां! तू जो चाहे सो मांग ले।”

बुढ़िया बोली – “मुझे तो मांगना नहीं आता। कैसे और क्या मांगू?”

तब गणेशजी बोले – “अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग ले।”

तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा – गणेशजी कहते हैं “तू कुछ मांग ले, बता मैं क्या मांगू?”

पुत्र ने कहा- “मां! तू धन मांग ले।”

बहू से पूछा तो बहू ने कहा- “नाती मांग ले।”

तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं। अत: उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा, तो उन्होंने कहा – “बुढ़िया! तू तो थोड़े दिन जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे। तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।”

इस पर बुढ़िया बोली- “यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।”

यह सुनकर तब गणेशजी बोले- “बुढ़िया मां! तुमने तो हमें ठग लिया। फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा।” और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह सब कुछ मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना।

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